Saturday, November 21, 2009

hindai words


1
खुदा कुछ कर मदद एक इश्क ऐसा दे दे,
हो जाए जिससे दिल की चाहत कोई !!
आसमान के चाँद जैसा हो जो निश्चल हमसफ़र ,
खुदा कुछ कर मदद हमनशी वो दे दे!
चाँद तारों की झलक हो और हो एक प्यारा दा दिल ,
बस सके उस दिल में मेरे प्रीत ऐसा दे दे !!
हीं मुराद हो बज्म की , ही सिकन हो रश्म की ,
कर सके गर इश्क मेरे से भी बढ़कर नज्म की ,
खुदा एस बदनसीब को खुशनशीब वो दे दे
हो जाए जिससे दिल की चाहत कोई !!
कुछ मांगू खुदा बस साथ ऐसा दे दे
गाता रहूँ , सुनता रहे वो ----------,
एक रात सही पर साथ ऐसा दे दे ,
हो जाए जिससे दिल की चाहत कोई,
गर मिल सके स्वपननील मेरा वो हमसफ़र ,
खुदा एक काम कर , ले चल मुझे कुछ उस जगह
इश्क की जहाँ उठती
शाम हो या हो दोपहर,
सो सकूँ ताकि जहाँ मैं खावों में अपने हमसफ़र के,
गर मिलता हो कहीं ऐसा वतन ,
क्या कहूँ बस खुदा मेरी जिंदगी तू ले ले ,
खुदा कुछ कर मदद एक इश्क ऐसा दे दे,
हो जाया जिससे दिल की चाहत कोई !!

2
अब कहाँ हूँ कहाँ नही हूँ मैं ,
जिस जगह था, वहाँ नही हूँ मैं ,
ये कौन आवाज़ दे रहा है मुझे ,
कोई कह दे वहाँ नही हूँ मैं.......!!!

3

वो परिंदा जिसे परवाज़ से फुर्सत हीं नही था
अब अकेला हातो दीवार पे बैठा है
मैं आइने में अपनी तस्वीर पहचानता भी तो कैसे
हमेशा उसकी हीं तस्वीरें बनता रहा था मैं

4

हँसी अपनी भूल गया अजीब है तेरा शहर ,
हर
तरफ धुंध है अजीब है तेरा शहर ,
कभी
ख्वाबो की समंदर थी जिन्दाजी मेरी ,
अब
ख्वाबे सताती है मुझे ,
अजीब
है तेरा शहर .......!! जिंदगी का पता पूछने आया था बिथौम्स तेरी वादों पे
अपना
हीं आसियान भूल गया ,
अजीब
है तेरा शहर ..........
दो
एक चेहरे थे पहचाने जिंदगी की राहों में
अब
धुंध ही धुध है पसरी चारो तरफ़
अजीब
है तेरा शहर ................
तुमने
तो बड़ी कसीदें सुने थी- क्या हुआ...
शायद
सपने मरे जाते है यहाँ
अजीब
है तेरा शहर
तमन्ना
थी दो एक दिन जीने की
जाने
क्यूँ तबियत बदल सी गई
अजीब
है तेरा शहर..............!!!
एक ख्वाब था , दिल में तन्हा... पल-पल सवार था, सजाया था , संभाला था दुनिया की हवायों से ,, पर बस पता नही , क्यूँ उसे अच्छा नही लगा.... की वो साथ दे मेरा...... अब तो ख़ुद मुझे भी खुस से ओई उम्मीद नही रही, है दिल में कोई आरजू...और हीं कोई अपराधबोध का एहसास ;;;; कल की सोचता हीं नही,, शायद मेरे जगह पर कोई और होता तो वक्त के साथ सब भूल जाता,,पर मेरा याद करना वक्त के साथ और भी बढ़ता जाता है कोई भी वक्त का मरहम या खुशी की चकाचौंध इसे धूमिल नही कर सकता !! बस एक हीं बात दिल में आता है अक्सर .......... की कोई बस मुझे उससे एक बार मिला दे ;; एक बार छूने दे उसे;;एक बार फिर उन आँखों का दीदार करने दे...... जिसमे कवेल मैं था -केवल मैं.... जब भी इस भगवान् नाम के सक्श की याद आती है पता नही बार-बार एक हीं सवाल मेरे होठों पे तैर जातीं है
"मुझसे उसे छिनकर तुम्हे क्या मिला" अबऐसा कोई खुशी नही जो राहुल को हँसा दे...कोई ऐसा नही जो राहुल को बहला दे.... बस एक तेरी यादें हैं -और एक आशा की अब भी मेरे पास करने के किए आखरी उपाय है जो मुझे उससे मिला सकता है ।

6
तन्हा था मैं तेरे दीदार से पहले ,
पर अब तो ये हाल चिलमन का है
की साँस लेते हुए भी करह जाती है हवा..


7

परखना मत परखने से कोई अपना नही रहता ,
भी आइने में देर तक चेहरा नही रहता ,
बड़े
लोगों से मिलने में हमेसा फासला रखो ,
जहाँ
दरिया समंदर से मिला , दरिया नही रहता,
तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नए मिजाज़ बाला है ,
हमरे
शहर में भी अब कोई हमसा नही रहता ,
मोहब्बत
में तो खुशबू है हमेशा साथ चलती है ,
कोई
इंसान है जो तन्हाई में भी तन्हा नही रहता !!!



8

कवि .......!! एक वो नाम जो पहचान करना चाहता है ख्वाव का, हकीकत का , प्यार का और जज्वात काएक वो नाम जो इंसान भले हीं भुला दे पर वो ख़ुद में पूर्ण है .किसी की चाह नही करता कविता, भले हीं कवि कुछ चाहे प्उसकी कृति किसी का मोहताज़ नहीउसके रहने पर भी वो रहेगी इन्ही फिजायों में ,गुनगुनायेगी इन्ही हवाओं में और जब कोई बहकेगा जब कोई तड़पेगा , वो ख़ुद गजलें और नगमें बन कर उस रुसबाई को अपना सौदाई बनालेगा...........!!!
............................पर मैं क्यूँ लिख रहा हूँ ये सब ? क्या बड़ी -बड़ी बातें करके मैं ख़ुद को बड़ा और दार्शनिक बनाना चाहता हूँ..?क्या मैं अपनी कविता का गुणगान करना चाहता हूँ ...?.........बिल्कुल नही..........मैं कवि नही हूँ, हीं मैं कविता बना सकता हूँ, मेरी नजरें मुकाबला नही करती सूरज की तेज किरनों कामेरी कोई औकात नही उससे लड़ने का, बल्कि मेरी गजलें पहचान है मेरी......! ये मैं हूँ एक नन्हा ख्वावकभी जो मरता, घसीटता समेटता जाता , पर हार मानता ! हर हार के बाद सर झुकाकर मैदान से बाहर ,फिर उसी गुरव से मुकावला करना --ये मैं हूँ -मेरी नगमे हैं जो किसी से मुकाबला नही करतीये पूर्ण है ख़ुद में, और अगर ये ख़ुद अपना परिचय नही कराएगी तो मेरे शब्दों से इसका क्या होगा --मैं मौन हूँपर नगमे मेरी साक्षी है उस पाक प्यार की , उस बेइंतहा मोहब्बत की ,जो केवल देने का नाम है, केवल चाहने का नाम है, केवल अनुभव करने का नाम हैऔर जब कभी मैं आंखें बंद करी उस पहेली का अनुभव करता हूँ तो वो मेरे हमेशा साथ dikhti है , जिसे मैं कभी सुलझा नही पाया .....कभी नही............!!!

9

कामवासना से भागने की कोई जरुरत नही,है । धयान पूर्वक उस में उतरो।परमात्मा ने हमे जो कुछ भी दिया है--अर्थपूर्ण हीं दिया है ।मगर सदियों से उसे दबाया जा रहा है । और उसी का परिणाम है की आज हम काम के बारे में खुल कर बात नही करतें । वह हमारे भीतर भर गया है की बाहर तो वेदांत , गीता , रामायण और शास्त्रों की बात होती है पर अन्दर...........!!! खुल जाओ ....स्वंतत्र हो जाओ, ख़ुद से सारे बंधन से - जो तुम्हे बांधते है ..!!!!

10

कभी अनायास जब उदास होता है मन
एक अजीब सी धड़कन दिल में उठती है
मुझे कुछ नही पता ,शायद कुछ पूछती है
बड़ी शान्ति मिलती है मुझे उस वक्त ,,
एक बड़ी ही अजीब शान्ति
तब सोचता हूँ ..............!!
कितना अजीब है - उदासी और शान्ति
दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नही ,
फिर भी मालूम नही
क्यूँ लगता है मुझे ,
ये दोनों पूरक हैं एक दुसरे के
और सख्त हो जाता हूँ मैं ,
बिल्कुल मजबूत ............!!
अजीब लगता है --
उदासी-शान्ति-मजबूती ....
इतना मजबूत इतना शांत
जैसे प्रशांत ..................!!
और हँसी आ जाती है मुझे बरबस ,
क्या बाकी मैं भी
दे सकूँगा मजबूती इतनी
अपनी दिल की लहरों को
की छाप छोड़ सके
धड़कने मेरी-ख्वाबे मेरी ,वक्त की रेत पे
क्या होगी शक्ति इतनी मेरी लहरों में
की तट पर पहुंचकर ये टूटे नही ,
छू जाए आसमान को ...............!!!!

11

(मैं इस कविता को पहले थोड़ा बता देता हूँ, सामानांतर रेखा--एक जोड़ी दो रेखा,,शायद एक के विना दूसरा बिल्कुल बेकार,,पर एक दुसरे का पूरक होते हुए भी वो कभी मिल नही पाते,,मिलते है तो बस अनंत पर , ये कविता भी ठीक वही स्थति व्यान करती है , वाकी आप समझ सकतें है.......... मैं मौन हूँ )

12


हम दोनों जानते है एक दुसरे को शायद बरसो से

फिर भी जाने क्यूँ लगता है मुझे

हम दोनों सामानांतर रेखाएं है एक जोड़ी

जो कभी मिल नही सकतें
दुनिया की नजरो में हम रेखाएं हैं हम एक जोड़ी

एक के बिना दूसरा बिल्कुल अधुरा

पर शायद यह एक फ़साना हीं है

एक ऐसा अनजान फ़साना

जो वास्तवकिता से बिल्कुल परे है

बार बार सोचता हूँ आख़िर क्यूँ है ये दूरी

क्यूँ नही तोड़ देते ये फासले ये मजबूरी

और सहसा तुम कह उठती हो

ये मज़बूरी नही ,कोई दूरी नही

ये तो एक सच्चाई है हमारे पवित्र प्यार की

जो है दुनिया से बिल्कुल अंजना , बिल्कुल अनचाहा

मैं भी सोचता हूँ --

ठीक ही तो कहती हो तुम

शायद बिल्कुल ठीक कहती हो

ये तड़पन ये धड़कन क्या कम हैं

जो प्यासे हैं तेरी एक झलक को

आख़िर इससे हीं तो तेरी यादें जुड़ी है

रातों की वो बातें जुड़ी है

जुड़ी है एक प्यारा सा "प्रकाश"

जिसकी ज्योति कभी मद्धम नही होती

कभी नही.....................!!!!


13

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी
लोग बेबजह उदासी का शबव पूछेंगे
ये भी पूछेंगे की तुम इतनी तन्हा क्यूँ हो॥
उंगलियाँ उठेगी सूखे हुए बालों की तरफ़
एक नज़र देखेंगे गुज़रे हुए सालों की तरफ़
चूडियों पर भी कई तंज किए जायेंगे
कापते हाथों में भी फिकरें कसे जायेंगे
लोग जालिम हैं हर बात का ताना देंगे
बातों-बातों में मेरा जिक्र भी ले आएंगे
उनकी बातों का जरा भी असर मत लेना
वरना चेहरे की उदासी समझ जायेंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात न करना
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी
लोग बेबजह उदासी का शबव पूछेंगे ॥

14

बे जुवान मैं हूँ परिंदा,
सुन ले खुदा मेरी,
कैद होकर छीन गई है

हर अदा मेरी .............!!

क्यूँ तू लाया है यहाँ ,
है कहाँ मेरा वतन
अब न सुन पायेगी हाय माँ सदा मेरी
देखा पिंजरे में तो आँख भर आई ,
कितनी सबसे है ये किस्मत ये जुदा मेरी ,
छीन कर मेरी उड़ान अपाहिज कर डाला ,
'राहुल' इतनी तो बड़ी नही थी सजा मेरी ॥

15

जीवन में कौन कहाँ कब कैसे मिल जाता है और बिछड़ जाता है , कोई नही जानता पर हर वो मिलने और बिछड़ने वाला अपने अतीत के साए को वर्तमान के दामन से जोड़कर चला जाता है ।अपनी कुछ यादें , कुछ पल को छोड़ कर ,,...............वो यादें कभी आंखें नम करतीं है तो कभी ढेर साड़ी खुशियाँ भर देती है ।

पर समय को किसने रोका है , वक्त करवटें बदलता है और एक ही झटके में सारे अरमानों , साड़ी खुशियों की शाम आँखों में आंसू ले आए

मेरे सपनो के शीशमहलs टूट कर बिखर गया । रह गया तो बस उसकी यादों के अबशेष

सच ही है जब आदमी का देखा हुआ सपना टूटता है तो उसे वास्तविक जीवन से भी नफरत होने लगती।

आज मुझे उससे मिले एक साल हो गए , परुन्तु आज भी वो मेरी आंखों में रोशनी बनकर , रगों में खून बनकर , सिने में धड़कन बनकर बसी हुई है । उसका हर लब्ज आज भी मेरे सिने को तार-तार कर जाता है ॥

16

मेरी आंखें देना उसे


जिसने कभी उगते सूरज को


किसी बच्चे के या फिर किसी स्त्री की


आंखों में प्यार नही देखा ।


मेरा दिल देना उसे


जिसके अपने दिल ने उसे दर्द के अशेष दिनों


के सिवा कुछ और नही दिया ।


मेरा रक्त देना उसे


जिस लड़के को कर के मलबे के नीचे


से खीचा गया था,


ताकि वह देख सके इस प्यारी दुनिया को ।


ले जाओ मेरी हड्डियाँ ,मांस पेसियां


नाडियाँ , रेसा-रेसा मेरी काया का ,


और निकालो कोई रास्ता ,


ताकि चलने लगे वह अपांग बच्चा ......!


जो कुछ बचे मेरा ,


जला दो , राख बिखेर दो ,


हवायों में , फिजायों में , घतायों में


की फूल खिल सके ,


फिजा महक सके ,


नाज़ कर सके जहाँ ,


यदि कुछ दफ़न करना चाहो


तो दबा देना मेरे दोष


मेरी कमजोरियां और मेरे पुर्बग्रह ,


जो पाले थे मैंने अपने हीं साथियों के विरुद्ध ,


मुझे याद अगर चाहो करना


तो जिसको जरुरत हो तुम्हारी


उससे बोल लेना मीठे दो बोल


यह सब कर सकोगे ...


जो मैंने कहा है तो मैं जिन्दा रहूँगा


हमेशा के लिया तुम्हारे पास .............!!!!

17

चल रहा था तन्हा


अंजान सड़कों पर


अविचल , अनीस्चित.......


शायद सवाले थी कुछ ,


चाहिए था जवाब जिनका ,


ख़ुद से ...........................!!


एक अंजान शख्स .....,,,,


आकर पास कुछ पूछा......,,,


अपने धुन में था मैं ,समझा नही कुछ मैं


दुबारा पूछा,...समझा.....


शायद जानना चाहता था मेट्रो का पता ,


मैंने बोला "मैं भी वहीँ जा रहा हूँ,


वो बोला , बातें किया मुझसे


मैंने उसका चेहरा देखा .....!


फटें पड़े थे कपड़े सारे ,


सर की टोपी भी थी फटी ,


उसके जूते हबी थे वही फटें


पता लगा बातों -बातों में ,


वो जोड़ रहा पाई पाई-पाई


पिछले दो सालों से ....


पुरी कर सके ताकि ख्वाइश


ख़ुद की नही पर उसकी


चाहता था वह जिसे सबसे ज्यादा


शायद ख़ुद से भी ज्यादा


वो एक चालीस साल की लड़की थी ,


प्यार करता था जिसे वह ,


साड़ी तहजीबों से ज्यादा


चाहता था जिसे वह साड़ी मजहबों से ज्यादा ,


मिल चुके थे जवाब मुझे


अपने सवालों के॥


और मैं भी मजबूत अपने रास्ते पे चल पड़ा ..........!!!!


18

एक टूटा रिश्ता

मझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे,
अक्सर तुझको देखा है की ताना बुनते
जब कोई धागा टूट गया या ख़त्म हुआ ,
फिर से बाँध के और सिरा कोई जोड़ के उसमें ,
आगे बुनने लगते हो ...............!
तेरे इस ताने में लेकिन
एक भी गाँठ गिरा बुनकर की,
देख नही सकता कोई,
मैंने तो एक बार बुना था
एक हीं रिश्ता ,लेकिन
उसके सारे गिरहें साफ़ झलकती
मेरे यार जुलाहे
मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे !!!

19

सहमा सहमा डरा सा रहता है,

जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है,

एक पल देख लूँ तो जी उठता हूँ,

गल गया सब ज़रा सा रहता है !!

20

सितारे असमान के अक्सर मुझसे पूछते है "क्या अब भी तुझे उम्मीद है उसके लौट आने का ?" और ये दिल हंस के जवाब देता है "मुझे अबतक यकीन नही है उसके चले जाने का ."

21

आज जब मैं -दिन भर भूखा रहता हूँ ,और रात को भी नही खा पाता ,तब दिल के एक कोने से आवाज़ आती है की कोई आए और मेरी मदद करे ,पर अगले पल सोचता हूँ --कोई मेरी मदद क्यूँ करे .........! ऐसा क्या है मुझमे ......! डर जाता हूँ तब मैं जब लगता है की कहीं मैं उससे तो रहम की भीख तो नही मांग रहा हूँ जिसे लोग अल्लाह , भगवान् ......और न जाने क्या- क्या कहते हैं । तब बड़ी मजबूती से दिल से आवाज़ आती है--"मैं भूखे मर जाना पसंद करूँगा पर तेरा नाम मेरी जुवान पर कभी न आएँगी, कंससे कम तबतक तो बिल्कुल भी नही जबतक मैं होश में हूँ ,और न हीं मैं तुम्हारे दरवाज़े पे khud के liye कभी रहम मँगाने जायूँगा ।"


तू ज्यादा से ज्यादा क्या कर सकता है ,,अगर मैं मरना चाहूँ तो तू मुझे आराम से न मरने देगा --यही न .............!इससे ज्यादा तो तू कुछ कर नही सकता ,,मुझे मंजूर है --तू कर ले सितम तेरी चाहत जहाँ तक है,, मैं न बोलूँगा अब बस ...................!!!


22


वर्षों बीत गयें नगमो की ,
वर्षों
बीत गए साये Align Centerवर्षों बीत गये प्यारे ,
ग़ज़लों
की बारातें आये !!
मौन
पड़े शब्द सारे मेरे,
मौन
पड़े सब अपने ,
देख
रहा तन्हा गलियों में तेरे हीं सदके सपने !!
दबी
पड़ी आवाज़ जो दिल में ,
कल
को फूट पड़ेंगे, मिट जायूँगा कल तो क्या गम,
साथ
रहेंगी नगमे ............!!
आज
सही मैं मौन पड़ा ,
नियति
की इस जग में ,
गिर
गिर कर मैं बहुत संभला हुईं,
नीरस
जीवन पग तल में !!
खिल
जाए ये तन्हा दिल ,
तुम
जो आवाज लगा दो ,
तर
जाएँगी नगमे मेरी ,
अपने
होठों से जो तुम गा दो!!
अब
नही साँसे भी साथी,
रंगत
नही कलियों में ,
मर रहा लम्हा घुट घुट कर ,
देख
तन्हा गलियों में !!
शायद
अब भी तू जाए,
कर मेरी नगमे गा जाए ,
बेजान पड़ी मेरी नगमो को,
अपनी
साँसों की खुशबू दे जाए !!
जीवन
की अन्तिम रातों में ,
एक
बार फिर तुम से कहता हुं,
नगमो को मेरी सहला दो ,
इन
नगमो में मैं बसता हूँ !!


23


धरती से जो एक आवाज़ आई ,


एक करुण पुकार कौंध गई धडकनों में,


लगा जैसे तुम हो, पर जब देखा पीछे मुड़कर


वो तुम न थी,


वो तो कोई और हीं था


शायद पागल चौराहे का


-कुछ बुद बुदाता हुआ ....!


शायद प्यार का मारा हुआ ,


कुछ कहता था वह


किसी का नाम बार बार उसके होठों पे तैरते थे


हसता कभी कभी रोता


--लोगों से कहते सुना "पागल है कोई"


अजीब लगा मुझे --


क्या इसे हीं कहतें है पागल ,


और कुछ संभला था मैं,


हाथों से सबारे थे बाल अपने,


डर था, लोग कह न दे पागल मुझे भी


मेरी भी हालत भी तो वोसी हीं थी


तेरे ख्यालों में बार बार तुझे पुकारता


पागल की तरह


पर मुलाकात हो न सकी


तेरी परछाई से भी


अरमानो की शाम ढलने लगी ,


पर तेरी यादें बार बार उकसाती मुझे


तेरा फैसला जानने को


रोकती कभी शायद मेरा दंभ ,


मैं कुछ समझ नही पाटा और,


बरबस याद आ गया वोही पागल ,


देखा था जिसे मैंने चौराहे पे ...........


लोग जिसे कह रहें थे पागल


पर नजरो में मेरी पागल वो था नही,


हाँ एक मुर्ख थे शायद


जो लुटता रहा ख़ुद को


एक प्यार के खातिर॥


जब कुछ न बचा


एक उपाधि दे दिया ज़माने ने उसे


उसका अर्थ भले हीं उसे मालूम न था


वो तो कुछ और हीं समझ रहा था


पागल का मतलब--


शायद एक सौदागर प्यार का


जो बगैर मोल लिए बेचता रहा अपने लहू


इसी एक उपाधि के लिया,


जो इस ज़माने ने दिया था उसे


वह बेफिक्र अपनी राह पे चलता बस चलता जा रहा था ,


कोई ठिकाना न था ,


कहीं जाना न था


न थी माथे पे कोई शिकन ,


न ही होठों पे कोई शिकवा


निहारता रहा उसे मैं


ओझल न हो गया तबतक---


मेरी आंखों से वो


सिखा गया वो पागल जिंदगी का फलसफा


छिपा जो होता है पीछे, हर प्यार के,


बस मुस्कुराता चल पड़ा था मैं भी


उसी पागल के रास्त्ते पे........!!!!


24

एक बीज बढ़ते हुए कोई शोर नही करता
पर एक पेड़ जब गिता है तो ,

जबरदस्त शोर और प्रचार के साथ ........!!!

( विनाश में शोर है, सृजन हमेशा मौन रहकर समृधि पाता है
.)

25


मेरी जिंदगी की किताब

कवि .......!! एक वो नाम जो पहचान करना चाहता है ख्वाव का, हकीकत का , प्यार का और जज्वात काएक वो नाम जो इंसान भले हीं भुला दे पर वो ख़ुद में पूर्ण है .किसी की चाह नही करता कविता, भले हीं कवि कुछ चाहे प् उसकी कृति किसी का मोहताज़ नहीउसके रहने पर भी वो रहेगी इन्ही फिजायों में ,गुनगुनायेगी इन्ही हवाओं में और जब कोई बहकेगा जब कोई तड़पेगा , वो ख़ुद गजलें और नगमें बन कर उस रुसबाई को अपना सौदाई बना लेगा...........!!!
............................पर मैं क्यूँ लिख रहा हूँ ये सब ? क्या बड़ी -बड़ी बातें करके मैं ख़ुद को बड़ा और दार्शनिक बनाना चाहता हूँ..?क्या मैं अपनी कविता का गुणगान करना चाहता हूँ ...?.........बिल्कुल नही..........मैं कवि नही हूँ, हीं मैं कविता बना सकता हूँ, मेरी नजरें मुकाबला नही करती सूरज की तेज किरनों कामेरी कोई औकात नही उससे लड़ने का, बल्कि मेरी गजलें पहचान है मेरी......! ये मैं हूँ एक नन्हा ख्वावकभी जो मरता, घसीटता समेटता जाता , पर हार मानता ! हर हार के बाद सर झुकाकर मैदान से बाहर ,फिर उसी गुरव से मुकावला करना --ये मैं हूँ -मेरी नगमे हैं जो किसी से मुकाबला नही करतीये पूर्ण है ख़ुद में, और अगर ये ख़ुद अपना परिचय नही कराएगी तो मेरे शब्दों से इसका क्या होगा --मैं मौन हूँपर नगमे मेरी साक्षी है उस पाक प्यार की , उस बेइंतहा मोहब्बत की ,जो केवल देने का नाम है, केवल चाहने का नाम है, केवल अनुभव करने का नाम हैऔर जब कभी मैं आंखें बंद करी उस पहेली का अनुभव करता हूँ तो वो मेरे हमेशा साथ dikhti है , जिसे मैं कभी सुलझा नही पाया .....कभी नही............!!!

26

कभी कभी जब उदास होता है दिल,

सोच्रा हूँ बातें करता हूँ,

तन्हाई से ...............!!

दीखाई पड़ता नही जब ,

कोई साथ मेरे ..........,,

ख्याल आता है एक दोस्त का

जो सायद दीखासके रास्ता ,

अँधेरी जिंदगी की गलियों में ......!!!

27

मुझसे मत पूछ की क्यूँ आँख झुका ली मैंने,


तेरी तस्वीर थी जो तुझसे छुपा ली मैंने,


जिस पे लिखा था की तू मेरे मुक़द्दर में नही,


अपने माथे की वोह तहरीर मिटा ली मैंने,


हर जन्म सबको यहाँ सच्चा प्यार कहाँ मिलता है,


तेरी चाहत में तो उम्र बिता ली मैंने,


मुझको जाने कहाँ एहसास मेरे ले जाएँ,


वक्त के हाथों से एक नज़्म उठा ली मैंने,


घेरे रहती है मुझे एक अनोखी खुशबु,


तेरी यादों से हर एक साँस सजा ली मैंने,


जिसके शेरोन को वोह सुनके बहुत रोया था,


बस वोही एक ग़ज़ल सबसे छुपा ली मैंने ।


28

मैं ऐसा ही था कुछ दिन पहले

मैं कम बोलता हूं, पर कुछ लोग कहते हैं कि
जब मैं बोलता हूं तो बहुत बोलता हूं.मुझे लगता है कि मैं ज्यादा सोचता हूं मगर उनसे
पूछ कर देखिये जिन्हे मैंने बिन सोचे समझे जाने क्या क्या कहा है!मैं जैसा खुद को
देखता हूं, शायद मैं वैसा नहीं हूं.......कभी कभी थोड़ा सा चालाक और कभी बहुत भोला
भी...कभी थोड़ा क्रूर और कभी थोड़ा भावुक भी....मैं एक बहुत आम इन्सान हूं जिसके कुछ सपने हैं...कुछ टूटे
हैं और बहुत से पूरे भी हुए हैं...पर मैं भी एक आम आदमी की तरह् अपनी ज़िन्दगी से
सन्तुष्ट नही हूं...मुझे लगता है कि मैं नास्तिक भी हूं थोड़ा सा...थोड़ा सा
विद्रोही...परम्परायें तोड़ना चाहता हूं ...और कभी कभी थोड़ा डरता भी हूं...मुझे खुद
से बातें करना पसंद है और दीवारों से भी...बहुत से और लोगों की तरह मुझे भी लगता है
कि मैं बहुत अकेला हूं...मैं बहुत मजबूत हूं और बहुत कमजोर भी...लोग कहते हैं लड़कों
को नहीं रोना चाहिये...पर मैं रोता भी हूं...और मुझे इस पर गर्व है क्योंकि मैं कुछ
ज्यादा महसूस करता हूं ............

( ये मेरे दिल की आवाज़ है , उसके जाने के बाद ,जो मैंने दो दिन पहले लिखा है , मुझे नही पता मैं मर पाउँगा या नही , पर अब जीने की तमन्ना तो नही है , इस लिए डर भी जाता रहा । मेरे मरने के बाद लोग जो भी बोलें , पर मेरे लिए तो ये एक नए सफर की सुरुआत है , अपने रब से मिलने की आखरी कोशिश ..........मरने के बाद मैं उस से मिल पायूँगा या नही , मैं नही जनता , और मैं एस तर्क मैं पड़ना भी नही चाहता , मैं तो बस यही जनता hun की उस से मुझे कैसे भी मिलना है , किसी भी tarike से , मैं एस तर्क में नही parunga की मैं मिल पायूँगा या नही , मेरे पास बस यही एक akhri रास्ता है ................ jispsr मैं चल रहा hu॥ )


दूर कहीं मुझे ले चल ,
मतलब के इन सायों से ,
अपनों और परायों से ,
दूर कहीं मुझे ले चल !!
कहीं नहीं अब आरजू मेरी ,
कहीं नहीं है मेरा वतन ,
टूट के तुझमे मिल जाऊँ ,
कतरा - कतरा अंगारों से !!

क्यूँ मुझे तू छोड़ चली ,
तन्हा मतलब की बस्ती में ,
दूर तलक विराना है ,
शहर दीखे न राहों में !!

चाह नहीं अब दिल में , फिर भी ,
मुड़ के देख फिजायों में ,
एक साथ टूटे खावों की
महक मिलेगी हवायों में !!

सबको तन्हा छोड़ चला मैं
साथ चली है बस यादें ,,
अंत समय माफी चाहे दिल
कपट किए जो यारों से !!

दूर चला है एक परिंदा ,
धुप भरी इन छायों से ,
मतलब के इन सायों से ,
अपनों और परायों से !!




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